Movie Review:Hamshakals

फिल्म रिव्यूः हमशकल्स
एक्टरः सैफ अली खान, रितेश देशमुख, राम कपूर, बिपाशा बसु, तमन्ना भाटिया, ईशा गुप्ता, चंकी पांडे
डायरेक्टरः साजिद खान
ड्यूरेशनः 2 घंटे 39 मिनट
रेटिंगः 5 में 0 स्टारईश्वर की सत्ता पर मुझे एक बार फिर से यकीन हो गया. उन्हीं की ताकत के भरोसे मैंने हिम्मतवाला बन साजिद खान की फिल्म हमशकल्स के दौरान अपने जीवन और जवानी के 159 मिनट बिना किसी बड़े निजी हादसे के गुजार लिए. वर्ना अपनी हैसियत ही क्या थी जो साजिद के इस कहर को झेल पाते.
रिव्यू शुरू करूं उससे पहले एक बात और. मैं कोई तीसमार खां किस्सागो तो नहीं. लेकिन साजिद खान अगर एक बार फिर से फिल्म बनाने की हिम्मत करते हैं तो उसके काफी सीन्स पहले से ही लिख सकता हूं. नायक कुछ होंगे, मगर उनके चार चार डबल रोल होंगे. वे करंट या सांप या घड़ियाल जैसी किसी चीज से घड़ी घड़ी बजेंगे. बार में एक मुजरा टाइप गाना होगा. महलनुमा घर में एक नाइट ड्रेस सॉन्ग होगा. और क्लाइमेक्स अनिवार्य रूप से ऐसा होगा, जिसमें ब्रिटिश राजपरिवार के कुछ नुमाइंदे नजर आएंगे और बोदी हरकतें करेंगे. और हां, चंकी पांडे एक बार फिर अपने घटिया रोल से आप सबको चकित करेंगे. उस फिल्म में हमशकल्स, हिम्मतवाला और तीसमार खां का मजाक भी बनेगा.

कहानी तो कुछ है नहीं, जो कहानी के नाम पर परोसा गया, उसे ही समझने की सामर्थ्य रखिए. अशोक अरबपति है. उसके पिता कोमा में हैं. अशोक स्टैंडअप कॉमेडियन है, उतना ही अच्छा, जितने डायरेक्टर साजिद खान हैं कैमरे के पीछे. अशोक का एक जिगरी यार भी है. उसका नाम कुमार है. जिसका अशोक की सेक्रेट्री मिस्टी के साथ याराना है. प्रकृति के खेल निराले हैं, इसलिए एक शो कौन बनेगा मिलियेनर की एंकर शनाया अशोक के पीजे (पुअर जोक्स) पर बेतहाशा हंसती है और फिर उसे अशोक से प्यार भी हो जाता है. इस हैप्पी स्टोरी में ट्विस्ट लाने के लिए चाहिए विलेन. एंटर मामा जी जिनका नाम है कुंवर आनंद नारायण सिंह उर्फ कंस. मामा जी अशोक की जायदाद हड़पना चाहते हैं. इसलिए वह जानवरों पर अजीबोगरीब प्रयोग करने वाले डॉक्टर खान की मदद से अशोक के पानी में ऐसा केमिकल मिला देते हैं, जिससे वह कुत्तों सी हरकत करने लगता है.
कुमार जिगरी यार है, तो वह भी ये पानी पिएगा ही. दोनों कुत्ते, माफ कीजिए इंसान पागलखाने पहुंच जाते हैं. जहां उनका सामना होता है हिटलर के भक्त वॉर्डन वाई एम यमराज से. इस पागलखाने में दो और पागल हैं, जो कभी परांठे बनाते थे. इनके नाम भी अशोक और कुमार हैं. यहां एक महा खतरनाक कैदी भी है, जो मामाजी का हमशकल है. इन सबके पागलखाने से भागने और मामा जी की साजिश बेनकाब करने का दौर चल ही रहा होता है कि एक और जोड़ी सामने आती है. डॉक्टर खान ने अपने दो भौंडे ढंग से दिखाए गए समलैंगिक असिस्टेंट को प्लास्टिक सर्जरी कर अशोक कुमार बना दिया है. और अशोक की मेड के देसी डिस्क बार चलाने वाले पंजाबी भाई मामा जी के हमशकल हैं. तो फिर झेलिए तीन तीन हमशकल्स. इंसान हैं तो प्यार होगा ही. पागलों के हिस्से का प्यार करने लिए एक खूबसूरत डॉक्टर साहिबा भी हैं. मामा जी के हिस्से की कुछ साजिशें बच गई हों तो कोकीन स्मगलर भी है, जो प्रकट रूप में परांठे की दुकान का मालिक है. हंसाने में कुछ कमी रह गई क्या. इस स्मगलर के दो बौने बॉडीगार्ड शायद ये कमी पूरा कर दें.
फिल्म में साजिद खान ने बहुत साहस दिखाकर दो सच बोले हैं. पहला, पागलों को सबसे हाई डिग्री का टॉर्चर देने के लिए साजिद खान की पिछली फिल्म हिम्मतवाला दिखाई जाती है. दूसरा, अंत में नए पागलों को और भी टॉर्चर करने के लिए साजिद खान की बहन फरहा खान की पिछली फिल्म तीसमार खां दिखाई जाती है. और जो अब भी पागल नहीं हुआ, उसे हमशकल्स देखनी चाहिए.
सैफ अली खान फिल्म के प्रमोशन के दौरान अपने बार गर्ल शॉट के लिए वैक्सिंग करवाने के अनुभव सबको सुनाते फिरे हैं. मगर क्या उनके दिमाग की भी वैक्सिंग हो चुकी है, जो उन्होंने ये फिल्म स्वीकार की. रितेश देशमुख भी सैफू भइया की ही कतार में खड़े हैं. राम कपूर ने फिल्म को अपने मजबूत शरीर के मजबूत कंधों पर बड़े अच्छे ढंग से उठाने की कोशिश की है. मगर ये उनके डाइटिंग प्लान की तरह ही औंधे मुंह गिरी है. ग्लैमर के फटके के लिए बिपाशा, तमन्ना और ईशा हैं और तीनों से ही कोई उम्मीद नहीं थी. उन्होंने हमारी उम्मीदों पर खरा उतर बंदे का मान बढ़ाया है.
फिल्म के गानों में 'तुझे अपनी बना लूं' कॉलर ट्यून हिट हो चुका है. बाकी गाने हिमेश रेशमिया की संगीत प्रतिभा का मर्सिया पढ़ने में काम आएंगे.
साजिद खान ने एक बार फिर से लंदन की नए सिरे से सैर करवाने की कोशिश की है. तो क्या हुआ जो ज्यादातर सेट्स आपको उनकी पिछली फिल्मों के बनाए और बचाए हुए नजर आते हैं. और उनकी निर्देशकीय प्रतिभा का क्या कहना. अल्लाह, इस वीर बालक को बरकत बख्शे. मगर दर्शकों के गाढ़ी कमाई के पैसों की कीमत पर नहीं.
फिल्म हमशकल्स इस साल की नहीं, इस दशक की नहीं, इस सदी की सबसे घटिया फिल्मों में शुमार होगी. ऐसा मेरा भरोसा नहीं, पूरा यकीन है. अगर फिर भी कोई हिम्मतवाला है, तो जाए और इसे देखे. क्योंकि कॉमेडी फिल्म खत्म होने के बाद होती है, जब अशोक और कुमार शूटिंग के दौरान हुए बने वाकये दिखाने के बाद कहते हैं, जाओ भाई फिल्म खत्म हो गई. अब जाओ. बरखुरदार हम तो गए पर दर्शक इसे देखने नहीं जाएंगे.