Movie Review:Lekar Hum Deewana Dil

फिल्म रिव्यूः लेकर हम दीवाना दिल
एक्टरः अरमान जैन, दीक्षा सेठ, सुदीप साहिर, कुमुद मिश्रा
डायरेक्टरः आरिफ अली
ड्यूरेशनः 2 घंटे 20 मिनट
रेटिंगः 5 में 1 स्टारएक कूल कहानी सुनिए. लड़की. नाम करिश्मा. शॉर्ट फॉर्म के. उसके घर में संगीत. मगर तभी घर पर पहुंचता है के का कूल गैंग. उसे किडनैप करने के लिए. इसका लीडर डीनो. असली नाम दिनेश. पर वो बहुत मिडल क्लास है न. के और डीनो हैं बेस्ट फ्रेंड. दोनों कर रहे हैं डांस. गा रहे हैं गाना. खलीफा खलीफा खलीफा बने.
डीनो अपने मां-पापा का नालायक बेटा है. क्योंकि बड़ा बेटा लायक जो है. इसलिए बागी बनना पड़ा. उधर के के पापा शेट्टी बीयर बार चलाते हैं और कॉलेज में शॉर्ट पैंट पहन जाने को बुरा नहीं मानते. पर साथ में यह भी मानते हैं कि लड़की की शादी शेट्टियों में ही और वह भी 21 साल से पहले हो जानी चाहिए.
बीयर बार में डीनो और के ये प्रॉब्लम डिस्कस करते हैं. उन्हें बोधि मिलता है. हम दोनों एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं. पसंद करते हैं. तो शादी कर लेते हैं. प्रेशर के कुकर की एक और सीटी बजती है और दोनों चंपत.
अब यंग हैं. मुंबई के हैं. तो भागकर कहां जाएंगे. गोवा. टिंग टिंग टिड़िंग. और गोवा जाएंगे तो गाना तो गाएंगे ही. वर्ना क्या मनी प्लांट को सहारा देने के लिए गिटार टांग रखा है.
उधर के और डीनो का परिवार उनकी खोज में जुटा है. तो फिर कुछ मस्ती और भागमभाग. फिर एक सॉल्यूशन. शादी कर लेते हैं. पेंपें पेंपें पें पेंपें. और अब सुहागरात. मगर लड़का करता है चीप हरकतें. और लड़की को चाहिए कुछ क्यूट, कुछ रोमैंटिंक कुछ मिल्स एंड बून्स टाइप. शुरू हो गए झगड़े. जो जल्द ही पॉटी में गुलाब जैसे दार्शनिक विमर्श तक पहुंच गए. और तब समझ आया असली दर्शन. जेब में हो नोट तभी न दिखे कोई खोट. पइसा खत्म तो सस्ते की तलाश में छोटे शहर और फिर जंगल में. यहां मिलते हैं माओवादी. ये कौन. जी हमें नहीं पता. हमारे हीरो को भी नहीं पता. भोला है न.
माओवादी भी कैसे. कूल टाइप. फिल्म यूनिट को बंधक बना रखा है. ताकि आइटम सॉन्ग देख सकें. तो बोलो आइटम सलाम. बताया न सब कुछ कूल है. और जब हॉट होता है, तो लड़की कट लेती है. पीछे से लड़का भी.
अब अगले हाफ में तलाक होगा. गलती सुधारी जाएगी. इस दौरान शेट्टी का एक चोमू हेल्पर और करिश्मा का द्वितीय संभावित पति हंसाएगा. के और डीनो काउंसलर और फैमिली कोर्ट वाली जज के सामने झगड़ेंगे. दोस्त रूठेंगे मनाएंगे और कुछ और तमाशे होंगे. आखिर में छत पर चढ़ लड़की चीखेगी. लड़का नीचे से बांदर की तरह उछलेगा और मंडप छोड़ दोनों भाग जाएंगे. कूल न.
लेकर हम दीवाने दिन वाहियात ढंग से लिखी गई फिल्म है. दोस्त से शादी, शादी या दोस्ती. जिम्मेदारी. शुरुआती इश्क. माता-पिता की उम्मीदें. कूल कैंपस लाइफ. इन सब सिक्कों को हम खूब खरीद और बेच चुके हैं. जरूरत नई टकसाल की है. डायरेक्टर आरिफ अली वह नहीं दिखा पाए. कहानी लिखने वाले हकीकत से कितने दूर हैं ये दंतेवाड़ा के नाम पर किए गए मजाक से समझ आ गया. रही सही कसर अरमान जैन की एक्टिंग न पूरी कर दी.
अरमान उस बालक की तरह हैं, जो जब ज्यादा खुश और दुखी होता है तो उसे अदरक की जरूरत पड़ जाती है. दरअसल बालक का गला पहले बैठता है, फिर चिंचियाती सी आवाज निकलती है और फिर दंडकारण्य सी घनी उसकी भौंहों के नीचे चमकती आंखें भी चिंचियाने लगती हैं. ज्यादा कुछ क्या कहें. बालक नया है. बस यूं ही समझ लीजिए कि बहुत निकले तेरे अरमां. फिर भी बहुत कम निकले. आपसे एक्टिंग न हो पाएगी कपूर खानदान के नए बालक.
फिल्म की एक्ट्रेस दीक्षा सेठ करिश्मा के रोल में कुछ जमी हैं. डेब्यू के हिसाब से उनकी एक्टिंग ठीक है. फिल्म के बाकी कलाकारों ने अपना काम ठीक ढंग से किया है. मगर फूहड़ कहानी और बेदम हीरो का बोझ वे क्या आज तक कोई भी नहीं ढो पाया है.
एक झटका और है. इस फिल्म का म्यूजिक ए आर रहमान ने दिया है. तो क्या हुआ जो गाने सुनकर नहीं लगता. अब उन्होंने भी ठेका तो नहीं उठा रखा न हर फिल्म में नए सिरे से जादू जगाने का.
लेकर हम दीवाना दिल कूल स्टफ के नाम पर कुछ भी दिखा देने वाले चलन की एक नई कड़ी है. आप खुद को बड़ा कूलेश्वर डॉट कॉम समझते हैं तो ही लॉग इन करें. ऑल द बेस्ट.