Movie Review:Humpty Sharma Ki Dulhaniya

 
फिल्म रिव्यूः हम्प्टी शर्मा की दुलहनिया
एक्टरः
आलिया भट्ट, वरुण धवन, सिद्धार्थ शुक्ला, आशुतोष राणा
डायरेक्टरः शशांक खेतान
ड्यूरेशनः 2 घंटा 12 मिनट
रेटिंगः 5 में 3.5 स्टार

हम्प्टी नाम है मेरा. फुकरा हूं पर दिल का अच्छा हूं. लड़कियों के साथ फ्लर्ट करता हूं, पर कोई किसी लड़की की मजबूरी का फायदा उठाए तो उसकी वाट लगा देता हूं. पापा की दिल्ली के एक कॉलेज में स्टेशनरी की दुकान है और वो अपने चमकते सिर की तरह चमको टाइप कूल हैं. बिल्कुल डीडीएलजे के ओ पुच्ची ओ कोका वाले अनुपम खेर अंकल की तरह. दो दोस्त भी हैं. शॉन्टी और पोपलू. एक दम मेरी तरह मक्कार और क्यूट. सब सेट चल रहा है. बस फेल होने का डर है. तो मैं जाता हूं हाथ में बल्ला और हुस्न पर हेलमेट का हिजाब डाले प्रोफेसर शास्त्री के पास. वहां मिलती है मैडम. नाम है काव्या.
हाय. मैं हूं काव्या. बचपन से ही हॉट. प्यार व्यार नहीं किया क्योंकि बड़ी दीदी का प्यार फेल हो गया. तो पापा फिर से गुस्सा हो जाएंगे न. मेरे अरमानों ने पंख लगाकर उड़ने के बाद करीना कपूर वाले डिजाइनर लहंगे पर अटकने पर समझौता कर लिया. उसके लिए आई हूं दिल्ली. पर पॉकेट में नहीं हैं पैसे. यहां एक चेप बंदा भी मिल गया है. हम्प्टी डम्प्टी नाम है उसका.
तो अब हम्प्टी मीट्स काव्या. तो होती है दोस्ती. शरारतें. आजमाइशें. गाने. मस्ती और आखिर में प्यार. पर काव्या प्यार कैसे कर सकती है. उसका तो रोका हो चुका है एनआरआई अंगद के साथ. डॉक्टर है. फिट बॉडी है. अच्छा कुक है. कोई ऐब नहीं. और फिर प्यार पर पहरेदारी के लिए बाऊ जी भी तो हैं. अब क्या करेगी काव्या बाई अंबाले वाली. दिल्ली का फेल पास हम्प्टी या सेट अमरीकन मुंडा अंगद. और फिर प्यार के हाथों वशीभूत होकर हम्प्टी अपनी दुलहनिया लेने जाता है और आ जाते हैं स्टोरी में ढेर सारे ट्विस्ट.

एक ब्रेक लेते हैं. कहीं आपको डीडीएलजे तो याद नहीं आ रही. सही आ रही है. ये फिल्म डीडीएलजे का देसी चिल्ड आउट वर्जन ही है. इसमें खूब सारी कॉमेडी, इमोशन, थोड़ी सी फाइट, यारी, प्यारी, परिवार, गाने और संस्कारी पर कुछ क्रोधी बाबू जी हैं. अगर आपको फनी, मसालेदार, एंटरटेनिंग फिल्म देखनी है, तो ये इस वीकएंड की बेस्ट च्वाइस है.
आलिया भट्ट को भले ही देश के राष्ट्रपति का नाम न पता हो, पर एक्टिंग की एबीसी उनसे सोते में भी सुन सकते हैं आप. क्यूट, सेंटी, वॉना बी, हर मात्रा मुकम्मल ढंग से माप उड़ेली गई है काव्या के किरदार में. वरुण ने भी अच्छा काम किया है. मैं तेरा हीरो की तरह वह घड़ी घड़ी चीप जोक्स या पंच मारने की कोशिश नहीं करते. कभी लाउड तो कभी अंडरकरंट इमोशंस को उन्होंने बखूबी निभाया है. वेल डन माई बॉय. आशुतोष राणा को पर्दे पर देखना अच्छा लगा. बिलाशक वह बहुत बेहतरीन एक्टर हैं. और ये रोल उनकी रेंज का सुबूत देता है. इसके अलावा हम्प्टी के दोस्त पोपलू के रोल में साहिल वेद ने अच्छी एक्टिंग की है. खासतौर पर अंगद के साथ गे रोमैंस वाले सीन जबर हैं. अंगद से याद आया. सिद्धार्थ शुक्ल भी तो हैं इसमें. आनंदी के पति वाले सिद्धार्थ. इस फिल्म में उनके हिस्से ज्यादा फुटेज नहीं आई. जितनी भी आई, उसमें वह ठीक लगे. पर साइडकिक से बोहनी कितनी बरकत देगी. कहा नहीं जा सकता

फिल्म की कहानी बहुत नई ताजी नहीं है. पर स्क्रीनप्ले में कसावट है. मतलब बीच में एक बार भी आप व्हाट्स एप या फेसबुक चेक नहीं करते. गानों को छोड़कर. एकआध गाने रेगुलर टाइप्स हैं. जो अच्छे हैं, वो तो हैं ही हैं. डायरेक्टर शशांक ने अपने प्रॉड्यूसर करण जौहर के गुण धर्म तो अपनाए ही, डायलॉग्स में देसीपन और असली रंगबाजी ला उसे और जमीनी और यकीना बना दिया है. क्लाइमेक्स थोड़ा ज्यादा फिल्मी हो गया है. पर इट्स ओके. तब तक हम हम्प्टी डम्प्टी और उसकी क्यूट काव्या के प्यार में अदमुंदे हो चुके होते हैं. वैसे भी फिल्म कहके फिल्मी होती है. हम सब की तरह. कहीं कहीं. और जब होती है. तब बोर तो कतई नहीं करती.
फिल्म में स्टीरियोटाइप्स का अभाव है. जो कि जाहिर है कि अच्छी बात है. लड़के को जब लगता है कि लड़की किस करेगी, तब उसका पपलू बन जाता है. लड़की को जब लगता है कि लड़का फोन उठा रोमैंस करेगा. वह घोड़े ओएलक्स कर सो रहा होता है. जब लगता है कि बाबू जी फायर हो जाएंगे. वह बालक को पास बुला सुट्टा उधार मांगते हैं. जब लगता है कि प्यार में विलेन बोदा होगा. वो स्टड निकलता है. यानी फिल्म में कहीं भी पहले से प्रिडिक्ट कर सुस्ताने की गुंजाइश नहीं.
एंटरटेनमेंट-एंटरटेनमेंट-एंटरटेनमेंट चाहने वालों के लिए, यही है राइट च्वाइस बेबी. ओह.याह