Movie Review:Chal Bhag

मूवी रिव्यूः चल भाग
एक्टरः दीपक डोबरियाल, वरुण मेहरा, तरुण बजाज, कीया खन्ना, संजय मिश्रा, यशपाल शर्मा, मुकेश तिवारी
डायरेक्टरः प्रकाश सैनी
ड्यूरेशनः 1 घंटा 51 मिनट
रेटिंगः 5 में 1.5
मुन्ना सुपारी गली का गुंडा है. कद काठी हैंगर सी. कंधे ऐंठे, गाल की हड्डी निकली और अकड़ और भी ज्यादा निकली. बात बात पर उस्तरा मारता है. दलेर सिंह पहली नजर में एक क्यूट गठीला आशिक है. मंदिर के बाहर एक सुंदर सी लड़की को खंभे के पीछे से ताड़ता. बाद में पता चलता है जेल से छूटा तड़ीपार है. एक बंटी चोर भी है. शकल से ही छिछोरा. भूरे पाल, उस पर लाल रूमाल की पट्टी. संजय दत्त की डी ग्रेड कॉपी. चेन स्नैचिंग करता है, पॉकेट मारता है और बीच के टाइम में लाजपत नगर की कोल्ड ड्रिंक के बीच गिफ्ट पाकर खींखी करती लड़की से रोमांस करता है.
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ये तीनों अपनी अपनी लफूझन्नागीरी में लगे रहते हैं. फिर पुलिस के हत्थे चढ़ते हैं. पुलिस इन दिनों एक ताकतवर एक्स एमएलए के कातिलों की तलाश में है. कातिल उस्मान भाई के सगे हैं, मगर कोटा पूरा होना है. तो पुलिस वाले इन तीनों को ही फर्जी एनकाउंटर में मारने की तैयारी करते हैं. तीनों भागते हैं. कुछ वक्त बाद इनकी भागदौड़ में उस्मान भाई की रखैल और दलेर सिंह की मंदिर वाली माशूका भी शामिल हो जाते हैं. भागमभाग चलती रहती है. आखिर में हवन का धुंआ उठ जाता है और सब शुद्ध हो जाता है.
फिल्म को ट्रैजिक कॉमेडी के तर्ज पर गढ़ने की कोशिश की गई है. मगर इसकी कहानी में बहुत ज्यादा नयापन नहीं है. इस तरह की भागमभाग को हम पहले भी कई बार देख चुके हैं.कई बार हमें समाज के हाशिये पर पड़े या फिर समाज की कालिख बताये जा रहे किरदारों के उजले मानवीय पक्षों को दिखाने की कोशिश हुई है.
फिल्म मुख्य रूप से मुन्ना सुपारी का किरदार निभाने वाले दीपक डोबरियाल के कंधों पर है. दीपक की कॉमेडी टाइमिंग अच्छी है. मगर स्क्रिप्ट के झोल के चलते एक वक्त के बाद ही उनका दोहराव अखरने लगता है. दलेर और बंटी के रोल में नए एक्टर वरुण मेहरा और तरुण बजाज सामने आए हैं. वरुण को देखकर तो यही लगता रहता है कि जैसे किसी कॉलेज गोइंग बालक को जबरन गुंडा बनने के लिए मजबूर कर दिया हो. उनका किरदार टफ है. मगर संवाद अदायगी, देह भाषा और भाव क्यूट हैं. जाहिर है कि यह घालमेल जमता नहीं. इसी तरह से बंटी के रोल में तरुण बजाज भी हकलाते अटकते भटकते ही रहते हैं. कजरी के रोल में कीया खन्ना भी शुरुआती फुटेज में ठीक लगती हैं. मगर जैसे ही उनके हिस्से डायलॉग और किरदार के आरोह अवरोह आते हैं. रायता फैल जाता है. गोबर पर सुहागा धरने का काम करता है आइटम नंबर, जो पूरे फिल्म इंडस्ट्री को घुन की तरह खाये जा रहा है.
फिल्म में यशपाल शर्मा, मुकेश तिवारी और संजय मिश्रा जैसे मंझे हुए एक्टर भी हैं. पहले दोनों एक्टर्स ने पुलिस वालों का रोल किया है, जबकि संजय एक दलाल बने हैं. इस फिल्म को देखकर यही लगता है कि तीनों लोग बीच बीच में खर्चा पानी के लिए भी कुछ फिल्में यूं ही कर लेते हैं. या शायद मन में नए एक्टर्स प्रोड्यूसर्स की मदद का भाव रहता होगा.
फिल्म चल भाग वैसे तो पूरे वक्त भागती रहती है. मगर स्टोरी में कुछ खास ट्विस्ट न होने और जोक्स के थके होने के कारण यह आधा घंटा बाद ही हांफने लगती है. डायरेक्टर प्रकाश सैनी कहीं से भी नई उम्मीद नहीं जगाते हैं. वह हर वक्त घिसे हुए ट्रिक्स का इस्तेमाल कर अपनी फिल्म को संवारने की नाकामयाब कोशिश करते हैं. इंस्पेक्टर बने यशपाल शर्मा के चेहरे पर बीवी से दबने का स्टीरियोटाइप हो या फिर विलेन का चबाचबाकर और चीखकर डायलॉग बोलना, सब कुछ घातक रूप से बासी हो चुका है.
फिल्म देखें अगर कॉमेडी के नाम पर कुछ भी झेल सकते हैं.