Movie Review:मंजूनाथ




फिल्‍म रिव्‍यू: प्रेरित करती है 'मंजूनाथ'
एक्टरः सशो सत्यीश सारथी, यशपाल शर्मा, सीमा बिस्वास, अनजोरी अलख, फैजल रशीद, किशोर कदम, जगदीश खट्टर
डायरेक्टरः संदीप ए वर्मा
स्टारः 5 में 3.5
रब्बी शेरगिल का गाना है. जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं. इस गाने में कई लोगों का जिक्र आता है. बिल्किस बानो, मंजूनाथ, सत्येंद्र दुबे. ये हमारी आपकी तरह आम आदमी थे. जो व्यवस्था के अलग-अलग भद्दे चेहरों को आईना दिखाते हुए गुजर गए. ये गाना धुंध के बीच इंसानियत नाम की पवित्रता बचाए रखने की जिद सा लगता है. आज फिल्म मजूनाथ देख रहा था तो ये गाना बार बार याद आ रहा था.
मंजूनाथ एक ऑयल कंपनी का ईमानदार अधिकारी था. उसने पेट्रोल में मिलावट करने वाले माफिया पर सख्ती करी तो बदले में छाती में छह गोलियां मिलीं. ये हादसा हुआ साल 2005 को.
इसी घटना को आधार बनाकर फिल्म बनाई गई है. हमारे लिए मंजूनाथ की एक हादसे का शिकार ईमानदार आदमी भर की पहचान थी. ये फिल्म उस पहचान को एक शकल, एक जिंदगी मुहैया कराती है.मंजूनाथ आईआईएम लखनऊ का स्टूडेंट है. पढ़ाई करता है, मगर जिंदगी भी खूब जीता है. उसके तीन दोस्त भी हैं वहां पर. गौतम, सुजाता और अंडी.
फिर कैंपस प्लेसमेंट होता है और मंजूनाथ को एक ऑयल कंपनी में सेल्स अफसर की क्लास वन नौकरी मिलती है. पोस्टिंग होती है यूपी के इंटीरियर इलाके लखीमपुर खीरी में. यहां काम करने के दौरान उसे पता चलता है कि किस तरह से पेट्रोल डीलर और ऑयल कंपनी के अधिकारी मिलकर लोगों को चूना लगा रहे हैं. ऐसा ही एक शख्स है गोलू गोयल, जो मंजूनाथ का कथित दोस्त भी है. जब गोलू मंजू के बार बार हिदायत देने पर भी नहीं सुधरता, तो मंजू उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर देता है.
इस दौरान उस पर कई तरह के दबाव डाले जाते हैं. वह तकरीबन पागल होने की कगार पर पहुंच जाता है. कर्नाटक के एक कस्बे में रहते उसके निम्न मध्यवर्गीय माता पिता इससे परेशान हो जाते हैं. दोस्तों को भी मंजू का यह अनप्रैक्टिकल रवैया समझ नहीं आता.
मंजू वापस घर लौट जाता है. मगर फिर उसे लगता है कि सब कुछ यूं ही होते देखते रहना लूजर हो जाना है. और वह लूजर नहीं है. तो मंजू वापस आता है और पूरी रौ में काम करना शुरू कर देता है. और फिर एक दिन माफिया उसे रास्ते से हटा देता है चैन की सांस लेने को. पर इस मुल्क में इतना भी अंधेर नहीं. मंजू की मौत जाया नहीं होती.
फिल्म की पटकथा अंत के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो बेहद चुस्त है. एक एक किरदार के मैनरिज्म और उभार पर खूब काम किया गया है. फिल्म के इक्का दुक्का गाने भी एक आम आदमी के संघर्ष को गाढ़ापन और रवानी देते हैं. नैरेशन खुद मंजूनाथ करता है. मरा हुआ मंजूनाथ. और वह बीच बीच में रुककर जब आपकी तरह आंख ठिठका सवाल करता है, तो हम खुद को कटघरे में खड़ा पाते हैं. यही सच है. हमारे आसपास मंजूनाथ लड़ते रहते हैं, मरते रहते हैं और हम मुल्क पर नाज करने के बहान खोजते रहते हैं.
फिल्म आखिर में कुछ खिंचने लगती है. गोलू गोयल और मंजूनाथ के भूत के बीच के संवादों से बचा जा सकता था. इसी तरह से मंजू के बाद की लड़ाई को कुछ संक्षिप्त रखते तो बुनावट और बेहतरीन होती.
अच्छी कहानी के अलावा फिल्म की खासियत इसके एक्टर्स की उम्दा परफॉर्मेंस भी है. लीड रोल में सशो सत्यीश ने बहुत उम्दा काम किया है. उम्मीद है कि एक्टरों के अभाव का रोना रोते डायरेक्टर्स की उन पर नजर पड़ेगी. मंजूनाथ की दुविधा, उसके अकेलेपन, उसकी सनक और फिर लड़ाई, हर रंग हर भाव को सत्यीश ने देहभाषा के सहारे सजीव कर दिया है. व्यवस्था के आदमी गोलू गोयल के रोल में मंझे हुए कलाकार यशपाल शर्मा हैं. हमेशा की तरह उन्होंने घाघपने को पर्दे पर ऐसे पेश किया है, गोया वह असल में ऐसे ही हों. एक अदाकार की यही सबसे बड़ी कामयाबी हो सकती है.
फिल्म के बाकी एक्टर्स मसलन अनजोर अलघ, जगदीश खट्टर और सीमा बिश्वास, सभी फिल्म को यकीनी बनाने में अपने तईं हक अदा करते हैं.
इस फिल्म के निर्देशक संदीप ने ज्यादातर हिस्सों में अपनी पकड़ बनाए रखी है. छोटे किरदारों को जिस ढंग से उन्होंने उभारा है, उससे फिल्म और भी बेहतर बन पड़ी है. लोकेशन से लेकर डायलेक्ट तक, हर चीज करीने से सजाई गई है.
ये फिल्म आपको जरूर देखनी चाहिए. आत्मा में कुछ उजास भरने के लिए. एक आम आदमी की खास कहानी से प्रेरित होने के लिए.