बहुत बोरिंग है ये 'गैंग ऑफ घोस्ट्स'

 

फिल्म रिव्यूः गैंग ऑफ घोस्ट्स
डायरेक्टः सतीश कौशिक
एक्टरः शरमन जोशी, परमब्रता चटर्जी, माही गिल, सौरभ शुक्ला, अनुपम खेर, मीरा चोपड़ा, राजपाल यादव, यशपाल शर्मा, चंकी पांडे, जैकी श्रॉफ, पाउली डाम
ड्यूरेशनः 2 घंटा 7 मिनट
रेटिंगः 5 में 1 स्टार

साल 2012 में बंगाली भाषा में एक फिल्म आई थी 'भूतेर भबिष्यत'. राइटर डायरेक्टर, अनिक दत्ता. इस फिल्म को अब हिंदी में 'मिस्टर इंडिया' के बावर्ची कलंदर सतीश कौशिक ने पेश किया है 'गैंग ऑफ घोस्ट्स' के नाम से. फिल्म एक समस्या को सामने रखती है. जिस तरह से शहरीकरण के नाम पर कंक्रीट का जंगल खडा किया जा रहा है, उससे क्या गरीब इंसान और प्रकृति, भूतों तक का जीना दूभर हो गया है. संदेश साफ-साफ बताने के लिए आखिर में इस पर एक स्पीच भी पेल दी गई है, भूत गेंदामल द्वारा. मगर इस विकट समस्या को हल्के-फुल्के ढंग से पेश करने की यह कोशिश झिलाऊ है. कुछ एक वाकयों को छोड़ दें, तो फिल्म घसीटामार लगती है. बहुत सारे नामी कलाकार थे, मगर सबकी काबिलियत पर ऐसा रंदा चलाया गया कि हाथ सिर्फ बुरादा लगा. क्यूट, मजाकिया और सुंदर भूतों के जाबड़ फैन हैं और हंसी के नाम पर कोई भी चूरन पचा लेते हैं, तभी इसे देखने जाएं.
कहानी कुछ यूं है कि...
मुंबई में एक मिल और उसके साथ सटा एक बंगला है. वहां फिल्म की शूटिंग होती थी. मगर एक दिन हीरोइन को कुछ दिखा और जगह टैबलॉइट रिपोर्टिंग के सहारे भूतिया करार दी गई. अब वहां एक और डायरेक्टर साहब (परमब्रता) पहुंचे हैं. फिल्म की लोकेशन फाइनल करने. उनसे चेप हो जाता है एक स्ट्रगलर राइटर राजू (शरमन जोशी). वह सुनाता है एक कहानी. उस बिल्डिंग के भूतों की. एक गेंदामल सेठ थे. अंग्रेजों को मिल बेच दी उन्होंने. नाराज वर्करों ने आग लगा दी. गेंदा मर गए. फिर यहां रहने आ गए. फिर और लोग भी आ गए. जाहिर है मर कर ही. गेंदा के अय्याश भाई से बेवफाई पाए एक्ट्रेस मनोरंजना कुमारी. नशे की ओवरडोज से मरा हरियाणवी सिंगर हुड्डा. बिकनी और ऊफ फैक्टर लाने के लिए एक सुंदर षोडशी सी बाला, बंगाली चूरण वाला, गरीब ड्राइवर, फौजी...
ये सब भूत सुकून से रह रहे थे. दुनियादारी में बची-खुची मौज और मौत काट रहे थे. इश्क लड़ा रहे थे, छुट्टियां मना रहे थे. मगर तभी एक बिल्डर की निगाह बिल्डिंग पर पड़ती है. भूत लोग भूतियापंती कर उसे बिना मारे भगा देते हैं.
तो क्यों अच्छी नहीं लगी ये फिल्म
ये सोच तो अच्छी है कि भूत हमेशा रामसे ब्रदर्स के कारखाने की छाप न लिए हों. थोड़े चिल टाइप हों. क्यूट अच्छे भूत. मगर उन भूतों के मुंह से जो बातें निकलें, वह भी चिल होनी चाहिए. स्टोरी तो अच्छी होनी ही चाहिए, जो कि नहीं हैं. फिल्म में जबरन लव सॉन्ग, पैरोडी और आइटम नंबर पेल दिए गए हैं. ज्यादातर लोग ओवरएक्टिंग करते नजर आते हैं. सौरभ शुक्ला और यशपाल शर्मा ही कुछ राहत देते हैं. माही गिल का किरदार 'पारो मैं ले आया, देवदास तुम ले आए' वाली टोन अपनाए रहता है. प्रियंका चोपड़ा की बहन मीरा चोपड़ा उम्मीद की दूब भी हाथ में नहीं थमा पातीं. जोक्स हों या जैकी श्रॉफ, सब रिपीट हो होकर मूड पीट डालते हैं. डायरेक्टर सतीश कौशिक ने क्या सोचकर फिल्म बनाई, वहीं जानें. मगर उनकी ये सोच हमें तो बिल्कुल भी नहीं जंची.