फिल्म रिव्यूः ख्वाब
एक्टरः नवदीप सिंह, सिमर मोटानी, बजरंग बली सिंह, नफीसा अली, ऋषि मिगलानी
डायरेक्टरः जैद अली
ड्यूरेशनः 1 घंटा 40 मिनट
स्टारः 5 में 1
ये मेरे पेशे की त्रासदी भी है और खूबसूरती भी. कल ही स्पोर्ट्स पर एक शानदार हॉलीवुड फिल्म मिलियन डॉलर आर्म देखकर आया और आज एक हिंदी स्पोर्ट्स फिल्म ख्वाब बर्दाश्त करनी पड़ी. ये फिल्म दो एथलीट्स के संघर्षों, सपनों और हौसलों की कहानी सुनाने का दावा करती है. मगर ये शब्द सिर्फ जुबानी जमा खर्च में ही खत्म हो जाते हैं. फिल्म की कहानी कमजोर है और एक्टिंग बहुत औसत. इसमें कुछ भी काबिल ए तारीफ नहीं है.
संजय और किरण एक गांव में रहते हैं. संजय किरण को पसंद करता है. करने के नाम पर कुछ नहीं करता और निरा अंगूठा टेक है. पर भागता सरपट है. उधर किरण तैरने में माहिर है, मगर फिलहाल उसकी जिंदगी अपने शराबी पिता की पिटाई सहन करते हुए गुजर रही है. फिर एक दिन उन दोनों पर नजर पड़ती है स्पोर्ट्स एकेडमी के गुरु राम प्रसाद लक्ष्मण की. वह दोनों को गांव से एकेडमी ले आते हैं.
फिल्म की कहानी में बारीक ब्यौरों को साधने की जरा भी कोशिश नहीं की गई है. न तो स्पोर्ट्स के सीन में कोई रोमांच है और न ही एथलीट्स की भीतरी की दुनिया दिखाने में कोई सलीका. सब कुछ बहुत नकली सा लगता है. लीड किरदार में नवदीप सिंह और सिमर की एक्टिंग भी प्रभावित नहीं कर पाती. एक तो दोनों के किरदार फ्लैट ढंग से लिखे गए, तिस पर उनकी एक्टिंग गोबर लीप देती है. कोच के रोल में बजरंग बली सिंह भी थिएटर के लोड से लदे नजर आते हैं. नफीसा अली कुछ देर को आती हैं और वहीं फिल्म थोड़ी सहज हो पाती है.
डायरेक्टर जैद अली बेतरह निराश करते हैं. बाहरी तो छोड़िए अगर उन्होंने देश में ही बनी अच्छी स्पोर्ट्स फिल्म देखी होतीं और कहानी पर जमकर मेहनत की होती तो हमें निराश न होना पड़ता. फिल्म का म्यूजिक भरवां है और सिनेमैटोग्राफी भी औसत. कुल मिलाकर औसत से भी कम है ये फिल्म. एथलीट्स की जिंदगी दिखाने के नाम पर जबरन ज्ञान पिलाने की कोशिश भर रह जाती है ख्वाब.
0Awesome Comments!